Thursday 30 October, 2008

मुंबई िसफॆ आपकी नहीं है राज ठाकरे

िपछले िदनों मैंने एक िफल्म देखी- वेडनसडे। यह एक बेहतरीन िफल्म है। िफल्म आतंकवाद के िखलाफ अकेले इंसान की जंग है। िदखाया गया है िक जब एक आम आदमी जागता है तो क्या होता है। सरकार लाचार हो सकती है- उसके राजनीितक स्वाथॆ हो सकते हैं... पर आम आदमी तो इन चीजों से ऊपर होता है। हां, आम आदमी के िवद्रोह के तरीके पर सवाल हो सकते हैं, पर उसके उद्देश्य को तो देखना ही होगा। राहुल ने जो भी िकया वह राज ठाकरे जैसे लोगों की करतूतों का नतीजा ही तो है। एेसे िवद्रोह को कब तक रोकेंगे? इतना तो तय है िक पुिलिसया गोली से तो इसे नहीं रोका जा सकता। राहुल की मौत से बात खत्म नहीं हो गई।
बेशमीॆ की हद देिखए। िडप्टी सीएम आरआर पािटल बड़े उत्सािहत होकर िवजयी मुद्रा में कह रहे थे िक पुिलस ने िबल्कुल सही िकया है। गोली का जवाब गोली से ही िदया जाएगा। कानून व्यवस्था को हाथ में लेने की इजाजत िकसी को नहीं है। पािटल साहब उसी प्रदेश के िजम्मेदार राजनेता हैं जहां राज ठाकरे और बाल ठाकरे जैसे लोग खुलेआम गुंडई करते हैं। पूरे प्रदेश में खुलकर कानून व्यवस्था की धिज्जयां उड़ाते हैं। तब कहां जाती है इनकी िजम्मेदारी? िकस िबल में िछपकर बैठे रहते हैं ये खाल ओढ़े शेर?
बात यहीं खत्म नहीं हुई। देश में धमाकों की आतंकी करॆवाई के वक्त रंग-िबरंगे शूट बदलने वाले होम िमिनस्टर िशवराज पािटल भी िबल से बाहर िनकल आए। अपनी माटी के प्रित उनका भी जमीर जाग गया। कहा, मुंबई पुिलस और प्रदेश सरकार ने बड़ा बेहतरीन काम िकया है। ये वही पािटल साहब हैं जो आतंकी कारॆवाईयों के बाद मीिडया से मुंह िछपाते रहते हैं।
... लेिकन एेसे लोगों की जमात बड़ी लंबी है। घिटया और संकीणॆ सोच की राजनीित की कोख से पैदा हुए बाल ठाकरे ने तो राहुल को मािफया तक कह डाला। िशवसेना ने अपने अखबार सामना में िलखा है िक मुंबई के बहादुर पुिलसवालों ने िबहारी मािफया दहशतगदीॆ को िबहारी स्टाइल में ही समाप्त कर िदया। िबहार और िबहािरयों के संदभॆ में अपमानजनक और फूहड़ िटप्पणी करने वालों को यह तो मानना ही पड़ेगा िक अपनी मेहनत और बौिद्धक सामथ्यॆ के बल पर िबहािरयों ने पूरी दुिनया में, हर फील्ड में अपना झंडा गाड़ा है। िबहार तो राष्ट्रीय गवॆ के प्रतीक ितरंगे की भी हृदयस्थली में िवराजमान है। िबहार भूख, िपछड़ापन, िहंसा और भ्रष्टाचार से पिरभािषत नहीं होता, यह अपनी अकूत बौिद्धक संपदा के बल पर सामथ्यॆवान है।
िपछले िदनों गोवा के एक िमिनस्टर ने कहा िक पटना से अगर सीधी ट्रेन गोवा आएगी तो यहां िभखािरयों की संख्या बढ़ जाएगी। यह िकतने िनचले दजेॆ की सोच है। िबहार ने तो दुिनया को धन्य िकया है। एक बानगी देिखएः-
दुिनया को बुद्ध िबहार ने िदया।
दुिनया का पहला गणतंत्र िबहार की देन है।
दुिनया को पहला िवश्विवद्यालय िबहार ने िदया है।
दुिनया को महावीर िबहार ने िदया है।
वाल्मीिक ने रामायण की रचना इसी धरती पर की।
सबसे बड़े सम्राट अशोक का धरती होने का गौरव भी िबहार के िहस्से है।
गिणत के महान िवद्वान आयॆभट्ठ को भी यहीं की माटी ने तैयार िकया।
राष्ट्रीय झंडे में अंिकत अशोक चक्र भी िबहार से ही आया है।
दुिनया में इकोनािमक्स के पहले ग्रंथ की रचना कौिटल्य ने यहीं की।
देश को पहला राष्ट्रपित इसी प्रदेश ने िदया।
मयाॆदा पुरूषोत्तम राम की पत्नी सीता माता की भी यही धरती है।
राष्ट्रकिव िदनकर िबहार की माटी में ही पले-बढ़े
आपातकाल के िखलाफ स्वर बुलंद करने वाले जयप्रकाश नारायण भी यहीं के थे।
उपरोक्त बातें राष्ट्रीय गवॆ और सम्मान की हैं। ये संपदाएं पूरे देश की हैं, िसफॆ िबहार की नहीं। िबहार तो महान परंपराओं का प्रदेश है। तात्पयॆ यह िक िबहार की पिरभाषा मािफया से तो कतई नहीं है। यह भी सच है िक महाराष्ट्र भी बाल ठाकरे या राज ठाकरे से पिरभािषत नहीं होगा। इसे अपनी जािगर समझने की भूल न करें। राज ठाकरे के गुंडों ने जो शुरूआत की है वह ठीक नहीं है। वक्त उनसे इसका िहसाब जरूर लेगाा।

Monday 27 October, 2008

मां तुझे सलाम

क्या आप सािफया को जानते हैं? केरल के एक छोटे से गांव में रहती है। गरीब है, पढ़ी-िलखी भी नहीं। अक्टूबर की शुरूआत में पािकस्तान जाने की कोिशश कर रहे कुछ आतंिकयों को मार िदया गया था। इसमें से एक था फैयाज। सािफया फैयाज की मां है।
आप सोच रहे होंगे िक आिखर सािफया की बात क्यों हो रही है? फैयाज आतंकी था, सो मारा गया। बात खत्म। क्यों? सािफया की बात इसीिलए िक वह फैयाज की मां नहीं कहलाना चाहती। एक आतंकी की मां होने का दाग नहीं ढ़ोना है उसे। उसने तो आिखरी बार अपने बेटे का मुंह भी नहीं देखा, नहीं देखना चाहा। वाकई एेसे लोग ही इस देश को ताकत देते हैं। सािफया को सलाम करता हूं। एेसी मांओं के देश का बेटा होने पर गवॆ महसूस करता हूं।
सामान्यतः एेसा होता है िक एक आतंकी के मारे जाने पर उसके पिरजन उसके साथ खड़े होते हैं। कहते हैं िक उसके बेटे को फंसाया जा रहा है- गलत आरोप लगाए जा रहे हैं।
... लेिकन केरल के ये दोनो उदाहरण आतंकवाद के मुंह पर तमाचा हैंै। मारे गए आतंिकयों में रहीम भी है िजसके िपता ने खुलेआम उसकी भत्ॆसना की है। इन लोगों ने राष्ट्रिवरोधी गितिविधयों में िलप्त अपने बेटों का शव लेने तक से इनकार कर िदया।
सािफया का ददॆ महसूस कीिजए। एक मां की ताकत-उसका सामथ्यॆ देिखए। पूरे देश के सामने वह कह गई िक वह शिमॆंदा है। उसकी कोख कलंिकत हुई है। उसने कहा िक अगर उसका बेटा आतंकी था तो उसे सजा िमलनी ही चािहए। साथ ही उसने यह भी कहा िक कोई भी औरत आतंकवादी की मां कहलाना पसंद नहीं करेगी। सिफया ने तो अपने बेटे का शव देखना तक कबूल नहीं िकया। इतना ही नहीं उसने तो यहां तक कहा िक वह अपने बेटे के अंितम संस्कार तक में िहस्सा नहीं लेगी। हां, उसने इतना अनुरोध जरूर िकया िक उसे संस्कार के समय की जानकारी दे दी जाए तािक वह अल्लाह से मांफी मांग सके। धन्य है ये देश। एक अन्य आतंकी रहीम के िपता ने भी अपने बेटे का शव लेने से इनकार कर िदया। इस िपता ने कहा िक उसने अपने बेटे की लाश के िलए दावा िकया है और उसे अंितम संस्कार के िलए उसकी लाश नहीं चिहए।
क्या ये लोग बहुत कुछ नहीं कह रहे हैं? क्या एेसे माता -िपता को सम्मािनत नहीं िकया जाना चािहए? क्या ये इस देश के िलए गवॆ करने की बात नहीं है? क्या राजनीितक पािटॆयों को अपने सरोकारों में एेसी बातों को भी शािमल नहीं करना चािहए?

Saturday 25 October, 2008

मानवता मरी नहीं है

मानवता मरी नहीं है।
खुलेआम लूटी जा रही है अस्मतें
यह बात और िक
हम चुप हों वहां
पर... बाद में िधक्कारते हैं
खुद को,
तो लगता है िक
मानवता मरी नहीं है।
मुट्ठी भर लोग
िनयंिॊत कर रहे पूरे समाज को
क्रूरतापूणॆ हत्याएं हो रही है,
यह बात और िक
हम मूकदशॆक हों वहां
पर बाद में
शिमॆंदगी महसूस करते हैं,
तो लगता है िक
मानवता मरी नहीं है।

जीवन के रंग

आओ दोस्त, कुछ बात करते हैं। कभी आपने सोचा है िक जीवन िमलने और जीने में क्या मौलक फकॆ है? एक सा लगता है न? एेसा है नहीं। जरूरी नहीं िक िजंदा रहते हुए िजंदगी का साथ िमले ही, वह साथ-साथ चले ही। यह कोई िनधाॆिरत शतॆ नहीं है जीने के िलए। यह भी संभव है िक पूरे जीवन में िजंदगी का साॐात्कार ही न हो... तो क्या? एेसा भी नहीं िक िजंदा रहने का बैर हो िजंदगी से। िजंदगी की तलाश तो जारी रहनी चािहए... शायद िमल जाए... टकरा जाए हमसे-आपसे। कुछ एेसी ही तलाश के साथ जीवन चलते रहना चािहए... लगातार। चिलए कुछ कोिशश करते हैं... शायद हो जाए िजंदगी से मुलाकात... यदा-कदा ही सही। यहां हम जीवन के हर रंग -हर आयाम की बात करेंगे। आपका स्वागत करते हैं। यहां हम समाज, राजनीित, धमॆ-अध्यात्म, गीत-संगीत, कहानी-किवता सब करेंगे। जहां भी जीवन का रंग िदखेगा, उसकी झलक पाकर अपनी साथॆकता-अपने वजूद को पाने की कोिशश करते रहेंगे।