Sunday 14 June, 2009

बाल ठाकरे का दोगलापन


बात समझ में नहीं आयी। शिवसेना प्रमुख को राष्ट्र की चिंता हो रही है। उन्हें दर्द हो रहा है कि आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों को पीटा जा रहा है। वे चाहते हैं कि आईपीएल में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को खेलने से रोका जाए।

यह उस बाल ठाकरे का दर्द है जिनके इशारे पर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को महाराष्ट्र में जानवरों की तरह पीटा जाता है। इन्हीं के नक्शे कदम पर उनके भतीजे राज ठाकरे भी चल रहे हैं। इसे ठाकरे का दोगलापन न कहें तो और क्या कहें।

जरा गौर से देखिए तो आस्ट्रेलिया में नस्लीय भेद विवाद का मूल है। महाराष्ट्र में भाषाई और इलाका विशेष को लेकर जहर फैलाया जा रहा है। फैला कौन कहा है? कौन है जो इन मुद्दों की दुकानदारी कर रहा है। चाचा और भतीजे में इस बात को लेकर होड़ मची रहती है कि इस बार बाहरी राज्य के छात्रों को किसने शिकार बनाया। ये कैसी सोच है?

अगर बात राजनेताओं तक सीमित रह जाए तो और बात है पर यह सब समाज में गहराई तक फैलता जा रहा है। बुद्धिजीवी तबका भी इससे वंचित नहीं है। पिछले दिनों पुणे ला इंस्टीट्यूट के लिए इंटरव्यू देने को बिहार के विद्यार्थी महाराष्ट्र पहुंचे थे। उनसे इंटरव्यू बोर्ड में शामिल लोगों ने बेहुदे सवाल पूछे। पूछा गयाः- क्या आप इस बात से सहमत हैं कि बिहार देश का क्राइम कैपिटल है? आगे पूछा गयाः- क्या बिहार के लोग अपराध को अंजाम देने के मकसद से यहां नहीं आते? बात यहीं खत्म नहीं हुई। आगे पूछा गयाः- क्या बिहार के बारे में राज ठाकरे की मानसिकता से आप सहमत हैं? ये कौन से सवाल हैं? इन सवालों की सार्थकता क्या है? औचित्य क्या है?

बिहारियों ने तो पूरी दुनिया में परचम लहराया है। क्या हर जगह वे अपराध को अंजाम देने जाते हैं? अगर इस तरह की बात है तो पूरी पुलिस फोर्स को बिहार में लगा देना चाहिए। देश के अन्य हिस्सों में इसकी जरूरत ही क्या? महाराष्ट्र में तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। क्यों? क्या इंटरव्यू लेने वाले कुंठित और घटिया मानसिकता वाले सज्जन इन बातों का जवाब दे पाएंगे?

अगर बात टपोरी टाइप के राज ठाकरे और बाल ठाकरे जैसे लोगों की हो तो चिंताजनक नहीं है पर अगर बौद्धिक समाज को यह रोग लगता जा रहा है तो यह ठीक भविष्य का संकेत नहीं है। राष्ट्र और समाज की बात ठाकरे जैसे लोग अगर न करें तो बेहतर है। मैं यह भी नहीं समझ पाता कि ये लोग मराठी मामलों की भी दुकानदारी कैसे कर लेते हैं? मुंबई में हमला हुआ। दुनिया सिहर उठी। ये तथाकथित मराठी अस्मिता के ठेकेदार कहीं नजर नहीं आ रहे थे। सड़क पर गुंडों की फौज को दौड़ाने से देश नहीं चलता- समाज नहीं बनता। इस तरह के लोगों को सड़क पर दौड़ाकर पीटा जाना चाहिए- उन्हीं के अंदाज में।

1 comment:

महेन्द्र मिश्र said...

शिवसेना प्रमुख को राष्ट्र की चिंता हो रही है...उन्हें दर्द हो रहा है कि आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों को पीटा जा रहा है....और जब देश के छात्र देश में ही उनके प्रान्त में ही पीटे जाते है तब उस समय उन्हें दर्द नहीं होता ? क्यों