पिछले दिन महान सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान जी का चंडीगढ़ आगमन हुआ। इस दौरान इस शख्सियत से हमारी हुई और हमने उनसे आराम से ढेर सारी बातें की । बातें बड़े काम की, बड़े मतलब की हैं। जरा आप भी गौर फरमाइए...। उनसे मेरी यह बातचीत हिंदी दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित हो चुकी है।
'दुनिया के समक्ष नित नई चुनौतियां दस्तक दे रही हैं। मंदी, आतंकवाद और बेरोजगारी...। विश्वास है कि हम इन सब पर पार पा लेंगे। हमारे युवाओं में तो असीम शक्ति है। हां, देश का राजनीतिक नेतृत्व दिशाहीन जरूर है पर युवाओं की शक्ति पर यकीन करता हूं। संभावनाओं से लबरेज युवाओं को सलाम करता हूं। यह कहना है प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान का। चंडीगढ़ के होटल ताज में वे अमर उजाला से विशेष बातचीत कर रहे थे।
उस्ताद जी ने कहा, 'चुनौतियां हैं। रहनी भी चाहिए। व्यक्ति के विकास और क्षमताओं के भरपूर दोहन के लिए ये बातें जरूरी हैं। आज के युवाओं को बहुआयामी होना होगा। मंदी और बेरोजगारी की समस्या सिर्फ इसीलिए हैं कि उन्हें शायद अपनी क्षमता का एहसास नहीं। कई क्षेत्र में युवाओं ने बेहतर काम किया है, कर रहे हैं। उनके ये काम एक दिन इतिहास के पन्ने बनेंगे।
उस्ताद जी के बेटे अमान और अयान का जिक्र हुआ तो बोल पड़े, 'वे दोनों कुछ-कुछ नया करते रहते हैं। मेरा साथ भी देते हैं, माडलिंग भी करते हैं, एंकरिंग भी कर लेते हैं। आजकल एक फिल्म में हीरो बनने में व्यस्त हैं। मैं उन पर कभी अपनी बात नहीं थोपता। उन्हें अपनी क्षमता के मुताबिक नए प्रयोग की पूरी छूट दी है। ऊपर वाले की कृपा से ठीक कर रहे हैं। युवाओं को ऐसा होना भी चाहिए। उनमें असीम संभावनाएं हैं।
आतंकवाद का जिक्र करते हुए खान साहब कहते हैं, 'चंद भ्रमित लोगों ने पूरी दुनिया का सत्यानाश कर रखा है। यह सब पैसे की भूख और कुछ धर्म के नाम पर दुकानदारी करने वालों की शरारत भर है। हम इसकी गंभीर कीमत चुका रहे हैं।इसी बहाने वे मुंबई कांड का जिक्र करना भी नहीं भूले। कहा, 'महाराष्ट्र में अलग-अलग आइडियालाजी की लड़ाई लडऩे वाले संकीर्ण सोच के लोगों को मुंबई कांड ने एक संदेश दिया है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ-साथ रहना होगा। यह संदेश है एकजुटता का। देश की हर समस्या का समाधान हो सकता है पर जरूरत है एक गांधी की। बिना गांधी के बात नहीं बनेगी।
सवालिया लहजे में एक बात समझाते हैं। कहते हैं, 'एक बात बताइए? जब उसने (अल्लाह या भगवान जो भी कह लें) इस दुनिया में आने-जाने का तरीका एक सा रखा है तो कहीं न कहीं सब एक ही हैं। यह अलग-अलग की लड़ाई सिर्फ संकीर्ण स्वार्थ के लिए है।उन्होंने कहा, 'मैं तभी हूं जब मेरे साथ सरोद है। क्या आप जानते हैं मेरा सरोद कौन बनाते हैं? नाम है- हेमेन्द्र चंद्र सेन। कोलकाता में रहते हैं। नाम पर मत जाइए- धोखा हो जाएगा। यह धोखा हमारी संकीर्णता से पैदा होता है। न तो सरोद से मैं अलग हो सकता हूं और न ही हेमेन्द्र को माइनस करने की सोच सकता हूं। हमें जीवन के इस दर्शन को सीखना होगा। यही सच्चे जीवन की राह है।
देश की राजनीतिक व्यवस्था पर भी खान साहब स्पष्ट विचार रखते हैं। वे कहते हैं, 'मुझे चिढ़ होती है जब मैं शाइनिंग इंडिया जैसे नारे सुनता हूं। खेल के नाम पर पैसा बहाया जा रहा है पर सरकार संगीत के लिए कुछ खास नहीं कर रही है। आपको यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि राजधानी दिल्ली में संगीत के आयोजन की दृष्टि से कोई बेहतर हॉल नहीं है। लंदन का अलबर्ट हॉल, रायल फेस्टिवल, वाशिंगटन का कैनेडी सेंटर, सिडनी का ओपेरा हाउस आदि ऐसे स्थान हैं, जहां परफार्म करना एक बेहतर अनुभव देता है। हमारे यहां कोई ऐसी जगह है ही नहीं।आजकल टीवी पर रियलिटी शो पर भी उस्ताद जी तीखी प्रतिकि्रया व्यक्त करते हैं। कहते हैं, 'यह सब ठीक नहीं हो रहा है। नए जमाने के टीवी वाले गुरु जी भी बड़े अजब-गजब से हैं। गुरु और शिष्य के बीच जिस तरह के संवाद होते हैं उसे देखकर बड़ा अजीब महसूस होता है। निश्चित रूप से ऐसे आयोजन प्रतिभाओं को एक प्लेटफार्म तो देते हैं पर विनर शो खत्म होते ही हवा हो जाता है। ऐसे आयोजन घराने और गुरु-शिष्य जैसे शब्द की गंभीरता खत्म कर रहे हैं। किसी का नाम नहीं लूंगा पर ऐसे कायॆक्रम में मैंने बड़े बदतमीज गुरुओं को भी देखा है।
आगे कहते हैं, 'मुकाम हमेशा संघर्ष से बनता है। इसका कोई शार्टकट नहीं है। आजकल सब फटाफट चाहिए। गुरु भी फटाफट मिल जाते हैं, शिष्य को भी फटाफट तैयार कर देते हैं- ऐसा नहीं होता। यह एक लंबी प्रक्रिया है। मैंने बारह साल की उम्र से दुनिया की यात्रा की है। रेल के रिजर्वेशन क्लास से लेकर जनरल डिब्बे तक में यात्रा की। एक प्रक्रिया से गुजरा हूं। संगीत तो खून में था पर कठिन तप से तराशा गया हूं। आज आपके सामने हूं।
3 comments:
अच्छा लगा उस्ताद जी के विचार जानना। धन्यवाद।
घुघूती बासूती
बहुत आभार इन विचारों की प्रस्तुति के लिए.
बहुत बढ़िया
विजय
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