Sunday, 3 May 2009

याद आते हैं बाबा नागार्जुन


मौसम चुनाव का है। इस मौसम में बाबा नागार्जुन बरबस ही याद आ जाते हैं। इस बीमार व्यवस्था पर उन्होंने अपनी लेखनी से खूब प्रहार किए थे। अपनी एक कविता में उन्होंने राजनेताओं को खूब नसीहत दी है। सच न बोलना... शीर्षक से इस कविता के कुछ अंश नीचे दिए जा रहे हैं...

सच न बोलना


छुट्टा घूमें डाकू-गुंडे, छुट्टा घूमें हत्यारे,

देखो हंटर भांज रहे हैं जस के तस जालिम सारे।

जो कोई इनके खिलाफ अंगुली उठाएगा, बोलेगा,

काल कोठरी में जाकर फिर वह सत्तू घोलेगा।

माताओं, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं,

बच्चे, बूढ़े-बाप तक न छूटते, सताए जाते हैं।

मारपीट है, लूटपाट है, तहस-नहस बर्बादी है,

जोर-जुलम है, जेल सेल है- वाह खूब आजादी है।

रोजी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,

कोई भी हो, निश्चय ही वह कम्युनिस्ट कहलाएगा।

नेहरू चाहे जिन्ना, उसको माफ करेंगे कभी नहीं,

जेलों में ही जगह मिलेगी, जाएगा वह जहां कहीं।

सपने में भी सच न बोलना, वरना पकड़े जाओगे,

भैया, लखनऊ-दिल्ली पहुंचे, मेवा-मिसरी पाओगे।

माल मिलेगा रेत सको यदि गला मजदूर-किसानों का,

हम मर-भुक्खों से क्या होगा, चरण गहो श्रीमानों का।

2 comments:

इम्पैक्ट said...

pta nhi aap mujhe pehchan bhi payenge k nhi. kbhi mai aapka trainee hua krta tha. dainik jagran dharshala me. bhatakte bhatakte aaple blog tk pahunch gya. sach maniye bahut achha lga. in dinon mai ludhiana dhainik bhaskar me reporter hu.

rajiv said...

Ranjan ji Lucknow me meva-misri ko to pata nahin lekin ragdai mast hai