Sunday 21 June, 2009

...तो भाजपा के भविष्य होते वरुण

एक बार फिर से वरुण गांधी के नाम पर सियासत तेज हो गई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी और शाहनवाज हुसैन ने सीधी बात कह दी है। उन्होंने सीधे तौर पर पार्टी की हार के लिए वरुण गांधी को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं मेनका गांधी ने अपने पुत्र के पाले में खड़े होकर कह दिया है कि उनके बेटे के माथे पर हार का ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं है। इसी बीच हैदराबाद के लैब से फारेंसिक रिपोर्ट भी आ गई है। यह साबित हो गया है कि भड़काऊ भाषण देने का दोष वरुण पर है। सीडी असली है, कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। और उसमें आवाज असली वरुण की ही है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। आठ मार्च को पीलिभीत में वरुण गाँधी ने एक समुदाय विशेष के खिलाफ अपनानजनक और भड़काऊ बात की। हंगामा हुआ। चुनाव आयोग ने मामले में अपनी सलाह दी। भाजपा से कहा गया कि वरुण को प्रत्याशी न बनाया जाए। अभी भाजपा मामले का विश्लेषण कर रही थी। तत्काल उसने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की। एक ओर कट्टर हिंदुत्व की बात थी और दूसरी तरफ भाजपा का बदला हुआ चेहरा। यह वह चेहरा था जो विकास की बात ज्यादा करता था। पार्टी के रणनीतिकार चूक कर गए। उन्होंने आयोग की सलाह को दरकिनार करते हुए वरुण के साथ खड़े होने का फैसला किया।
सियासत के गलियारे की खबर रखने वालों को भी शायद ही भाजपा के इतने निराशाजनक प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। सो, यह माना जाने लगा कि अचानक आकाश में चमका यह युवा सितारा भाजपा का भविष्य है। भाजपा में इस तरह के उत्साही लोगों को माथे पर बिठा लेने की परंपरा रही है। यह सच है कि अगर नतीजों ने भाजपा के रीढ़ की हड्डी न तोड़ दी होती तो वरुण टीवी स्क्रीन से लेकर अखबारों तक में चमकते रहते।
भाजपा से दो चूक हुई। एक तो उसने वरुण के मामले में आयोग की सलाह नहीं मानी और दूसरी प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह पर गैरजरूरी हमले किए। जनता इसे पचा न सकी और वह भाजपा के साथ नहीं रही। अगर भाजपा तभी आयोग की सलाह मान लेती तो देश भर में एक सकारात्मक संदेश जाता और नतीजे शायद इस तरह के नहीं होते। लेकिन शायद भाजपा की रणनीति बनाने वालों को लगा होगा कि वरुण तो राममंदिर जैसा जादू करने का माद्दा रखते हैं। बहरहाल चूक के बाद भाजपा में मंथन और सिरफुटव्वल का दौर अभी जारी है।

1 comment:

अजय कुमार झा said...

राजेश जी अछे राजनितिक आलेख के लिए धन्यवाद...भाजपा के रूप में जनता के पास एक बेहतर विकल्प हो सकता था..मगर लगता है की भाजपा अभी भी अपने आपको संभाल नहीं पा रही है..खैर इसकी कारण जो भी हों..मगर एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ये अच्छी बात नहीं है...