Saturday, 25 October 2008
जीवन के रंग
आओ दोस्त, कुछ बात करते हैं। कभी आपने सोचा है िक जीवन िमलने और जीने में क्या मौलक फकॆ है? एक सा लगता है न? एेसा है नहीं। जरूरी नहीं िक िजंदा रहते हुए िजंदगी का साथ िमले ही, वह साथ-साथ चले ही। यह कोई िनधाॆिरत शतॆ नहीं है जीने के िलए। यह भी संभव है िक पूरे जीवन में िजंदगी का साॐात्कार ही न हो... तो क्या? एेसा भी नहीं िक िजंदा रहने का बैर हो िजंदगी से। िजंदगी की तलाश तो जारी रहनी चािहए... शायद िमल जाए... टकरा जाए हमसे-आपसे। कुछ एेसी ही तलाश के साथ जीवन चलते रहना चािहए... लगातार। चिलए कुछ कोिशश करते हैं... शायद हो जाए िजंदगी से मुलाकात... यदा-कदा ही सही। यहां हम जीवन के हर रंग -हर आयाम की बात करेंगे। आपका स्वागत करते हैं। यहां हम समाज, राजनीित, धमॆ-अध्यात्म, गीत-संगीत, कहानी-किवता सब करेंगे। जहां भी जीवन का रंग िदखेगा, उसकी झलक पाकर अपनी साथॆकता-अपने वजूद को पाने की कोिशश करते रहेंगे।
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