Saturday, 25 October 2008

मानवता मरी नहीं है

मानवता मरी नहीं है।
खुलेआम लूटी जा रही है अस्मतें
यह बात और िक
हम चुप हों वहां
पर... बाद में िधक्कारते हैं
खुद को,
तो लगता है िक
मानवता मरी नहीं है।
मुट्ठी भर लोग
िनयंिॊत कर रहे पूरे समाज को
क्रूरतापूणॆ हत्याएं हो रही है,
यह बात और िक
हम मूकदशॆक हों वहां
पर बाद में
शिमॆंदगी महसूस करते हैं,
तो लगता है िक
मानवता मरी नहीं है।

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