क्या आप सािफया को जानते हैं? केरल के एक छोटे से गांव में रहती है। गरीब है, पढ़ी-िलखी भी नहीं। अक्टूबर की शुरूआत में पािकस्तान जाने की कोिशश कर रहे कुछ आतंिकयों को मार िदया गया था। इसमें से एक था फैयाज। सािफया फैयाज की मां है।
आप सोच रहे होंगे िक आिखर सािफया की बात क्यों हो रही है? फैयाज आतंकी था, सो मारा गया। बात खत्म। क्यों? सािफया की बात इसीिलए िक वह फैयाज की मां नहीं कहलाना चाहती। एक आतंकी की मां होने का दाग नहीं ढ़ोना है उसे। उसने तो आिखरी बार अपने बेटे का मुंह भी नहीं देखा, नहीं देखना चाहा। वाकई एेसे लोग ही इस देश को ताकत देते हैं। सािफया को सलाम करता हूं। एेसी मांओं के देश का बेटा होने पर गवॆ महसूस करता हूं।
सामान्यतः एेसा होता है िक एक आतंकी के मारे जाने पर उसके पिरजन उसके साथ खड़े होते हैं। कहते हैं िक उसके बेटे को फंसाया जा रहा है- गलत आरोप लगाए जा रहे हैं।
... लेिकन केरल के ये दोनो उदाहरण आतंकवाद के मुंह पर तमाचा हैंै। मारे गए आतंिकयों में रहीम भी है िजसके िपता ने खुलेआम उसकी भत्ॆसना की है। इन लोगों ने राष्ट्रिवरोधी गितिविधयों में िलप्त अपने बेटों का शव लेने तक से इनकार कर िदया।
सािफया का ददॆ महसूस कीिजए। एक मां की ताकत-उसका सामथ्यॆ देिखए। पूरे देश के सामने वह कह गई िक वह शिमॆंदा है। उसकी कोख कलंिकत हुई है। उसने कहा िक अगर उसका बेटा आतंकी था तो उसे सजा िमलनी ही चािहए। साथ ही उसने यह भी कहा िक कोई भी औरत आतंकवादी की मां कहलाना पसंद नहीं करेगी। सिफया ने तो अपने बेटे का शव देखना तक कबूल नहीं िकया। इतना ही नहीं उसने तो यहां तक कहा िक वह अपने बेटे के अंितम संस्कार तक में िहस्सा नहीं लेगी। हां, उसने इतना अनुरोध जरूर िकया िक उसे संस्कार के समय की जानकारी दे दी जाए तािक वह अल्लाह से मांफी मांग सके। धन्य है ये देश। एक अन्य आतंकी रहीम के िपता ने भी अपने बेटे का शव लेने से इनकार कर िदया। इस िपता ने कहा िक उसने अपने बेटे की लाश के िलए दावा िकया है और उसे अंितम संस्कार के िलए उसकी लाश नहीं चिहए।
क्या ये लोग बहुत कुछ नहीं कह रहे हैं? क्या एेसे माता -िपता को सम्मािनत नहीं िकया जाना चािहए? क्या ये इस देश के िलए गवॆ करने की बात नहीं है? क्या राजनीितक पािटॆयों को अपने सरोकारों में एेसी बातों को भी शािमल नहीं करना चािहए?
Monday, 27 October 2008
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3 comments:
Bahut badiya. aap ko diwali ki hardik subhkamnayein.
हिंदी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।
वाकई ऐसी मां के जज्बे को सलाम करना चाहिए, क्यों कि राष्ट्र सवरेपरि है।
आलेख अच्छा लगा। कृपया फांट की गलतियों और साइज छोटा होने से पढ़ने में कुछ दिक्कतें आ रही है। आशा करता हूं कि आगे इसे ठीक कर देंगे।
एकदम सही कहा आपने राजेशजी. ऐसे माता पिताओ को हमारा शत शत प्रणाम. हर माँ बाप अपनी संतान को अच्छे संस्कार ही देना चाहता है और इसके लिए कोशिश भी करता है फिर भी कुछ नौजवान भटक ही जाते हैं. ऐसे में इन दोनों माता पिताओ ने जो किया उसके लिए हम उनकी सराहना करते हैं.
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