बड़ी बेशर्मी महसूस होती है जब ये लगता है कि हमें कुछ बेशर्म और बदजुबान लोगों में से किसी को चुनकर अपना भाग्य निर्माता बना देना है। संतोष भी होता है तब जब इस तरह के लोगों को जनता भी उनके ही अंदाज में गरियाते हुए खदेड़ देती है। इन सब बातों से यह तो तय है कि चीजें इस तरह नहीं चलेंगी, नहीं चलनी चाहिए।
बदलाव का वक्त आ गया है। कहीं न कहीं सुगबुगाहट भी है और जनता अपने तरीके से इस बात का संकेत दे रही है। हाथ काटने की बात कहने वाले वरूण और रोलर के नीचे कुचलने की बात करने वाले लालू को यह सोचना ही होगा कि देश उनके तौर तरीके से नहीं चलेगा।
थोड़ा पीछे चलेंगे। पीलीभीत में वरूण ने जो जहर उगला वह अनायास नहीं रहा होगा। एक सुनियोजित सियासी सोच इसके पीछे रही होगी। विदेशों से ऊंची डिग्री लेकर आए वरूण इतने बच्चे और मासूम भी नहीं हैं कि उन्हें इसके दुष्प्रभाव का अंदाजा न रहा हो। वरूण के बयान पर जब बवाल हुआ तो अचानक भाजपा समझ न सकी कि उसे क्या स्टैंड लेना है। पहले वह कहती रही कि अभी वह वरूण के बयान का अध्ययन कर रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मीडिया से कन्नी काटते रहे। लेकिन भाजपा को जल्द ही लग गया कि खामोशी से तो उसे घर से घाटा हो जाएगा सो वरूण के समर्थन में कूद पड़ी। बहरहाल, लालू ने नहले पर दहला दे मारा। बिहार के किशनगंज में (यह मुस्लिम बहुल इलाका है) लालू ने सारी सीमाएं पार कर दी। उन्होंने कहा कि अगर वे गृहमंत्री होते तो वरूण को रोलर के नीचे कुचलवा देते। लालू जी को यह ध्यान शायद नहीं रहा कि इस देश की व्यवस्था उनकी बपौती नहीं है और डेमोक्रेटिक सिस्टम में इस तरह की कार्रवाई की इजाजत नहीं है। फिर इस तरह के बयान का क्या औचित्य है? क्या सिर्फ एक समुदाय विशेष को इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए? देश को चाहिए कि वरूण और लालू दोनों को इनकार करे। इस तरह के बयान और बातों को हतोत्साहित किया जाए, किया जाना चाहिए।
लेकिन जब एक बार बदजुबानी शुरू हो गई तो भला कौन रूकने वाला है। हर नेता को पता है कि ताली बजाने वालों की एक भीड़ इस देश में भेंड़-बकड़ी की तरह मौजूद है। भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में कांग्रेस को बुढ़िया कह दिया। प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की तरफ से सवालिया लहजे में इसका जवाब दिया और पत्रकारों से ही पूछा, क्या मैं बुढ़िया लगती हूं? मोदी रूके नहीं। उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, ठीक है। अगर कांग्रेस वालों को बुढ़िया वाली बात पसंद नहीं है तो मैं बुढ़िया नहीं कहूंगा। यह कहूंगा कि कांग्रेस तो गुड़िया की पार्टी है। अब जरा सोचिए। ये बुढ़िया और गुड़िया की बहस से देश का कौन सा भला होना है? एक परिपक्व राजनेता इस तरह की निरर्थक बात क्यों कर रहा है? अजीब सी नौटंकी चल पड़ी है पूरे देश में। एक और बददिमाग कांग्रेसी नेता इस चर्चा में कूद पड़ा। उसने मर्यादा की सारी सीमां लांघ दी। उसने कहा, भाजपा को चाहिए कि अटल और आडवाणी जैसे लोगों को अरब सागर में डाल दे। देश उम्र से नहीं अंदाज से चलता है। चुनाव का वक्त है। हमें भी चाहिए कि हम प्रगतिशील सोच वाला कोई प्रतिनिधि चुनें (अगर संभव हो तो) ताकि एक बेहतर भविष्य की उम्मीद तो बने।
4 comments:
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। हमारे चुनावों में मतदान न करने के कारण ही ऐसे दल और नेता सामने आए हैं जो नौटंक करके ही वोट बटोरते हैं।
घुघूती बासूती
बहुत सुन्दर सही कह रहे हैं .
aap to shayad pahle bloger hai jo haqiqat ko samne late hai.
1 लालू को यह सोचना ही होगा कि देश उनके तौर तरीके से नहीं चलेगा।
2अब जरा सोचिए। ये बुढ़िया और गुड़िया की बहस से देश का कौन सा भला होना है?
3भाजपा को चाहिए कि अटल और आडवाणी जैसे लोगों को अरब सागर में डाल दे। देश उम्र से नहीं अंदाज से चलता है। चुनाव का वक्त है।
in tino bayano se netaon ki bokhlahat samne aati hai. aur MODI ne to had kardi Budhiya kahkar kya vo apni 125 sal ki MA ko bahar nikal fekega? in baton se to unka charitra samne aajata hai.
aap sahi ja rahe hai.
BRAVO.
अब वो नौटंकी नही करेगें तो क्या करेगें।काम तो उन्हें करने की आदत है नही।
आपने बहुत सही पोस्ट लिखी है।
Post a Comment