यह देश की राजनीति का विद्रूप चेहरा है। यह नैतिक पतन की एक बानगी है। यह सब शर्मसार करने वाला है।
संजय दत्त यानी संजू बाबा को तो आप जानते ही होंगे... वही मुन्ना भाई एमबीबीएस वाले। ये वही संजय हैं जिन्होंने गुलाब हाथ में लेकर देश को गांधीगीरी का फंडा सिखाया था। परदे पर नौटंकी का यह फार्मूला इतना हिट हुआ कि लोग हर चौक-चौराहे पर देश भर में लोग हाथ में गुलाब लेकर गांधीगीरी को निकल पड़े। माहौल कुछ इस तरह बना कि देश में क्रांति आने वाली हो। खोखले और तथाकथित बुद्धिजीवियों की जमात ने संजू को माथे पर बिठा लिया। गांधी के दर्शन से कोई सरोकार न रखने वाले संजय को लोग गांधी का दूत समझने लग गए।
लेकिन परदे के चेहरे और जमीन की हकीकत में फर्क होता है। देर-सवेर यह लोगों के सामने भी आ ही जाता है। जल्द ही लोगों के सामने आ गया कि गांधी की टोपी मात्र पहनने से कोई शख्स गांधी नहीं बन जाता- नहीं बन सकता। उत्तर प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान संजय दत्त ने कहा कि उन्हें पुलिस वालों ने गिरफ्तार करने के बाद बहुत मारा। उन्हें सिर्फ इसीलिए मारा गया क्योंकि उनकी मां मुसलमान थीं। बड़ी अजीब सी फिलोसफी है न ये? इस देश को शायद मुन्ना भाई यह भी समझाने की कोशिश करें कि उन्हें गिरफ्तार इसीलिए किया गया क्योंकि उनकी मां मुसलमान थीं। पूरा देश- पूरी दुनिया जानती है कि संजू को किन कारगुजारियों की वजह से उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उनकी यह बयानबाजी राजनीतिक घटियापन का एक उदाहरण मात्र है।
अभी कुछ ही दिनों पहले संजू ने एक और घटिया बयान दिया था। उन्होंने अपनी पिता की मौत पर भी सियासी रोटी सेंकने की कोशिश की थी। संजय ने कहा था कि उनके पिता सुनील दत्त की मौत इसीलिए हुई कि संजय निरूपम को कांग्रेस में ज्यादा तवज्जो दी जा रही थी और उनके पिता को इग्नोर किया जा रहा था। इसी वजह से दत्त साहब तनाव में थे और उनकी मौत हो गई। ...क्या यह बेहूदा और बचकाना तर्क आपकी समझ में आता है? मैं यहां संजय निरूपम के साथ खड़ा हूं। उन्होंने संजू की इस बात पर मीडिया से मुखातिब होकर कहा था कि, मरहूम सुनील दत्त तो संजू के कृत्यों की वजह से परेशान रहा करते थे। उनकी सबसे बड़ी परेशानी तो संजू ही थे।
अब जरा सोचिए...। संजू इस तरह की बात आखिर क्यों कर रहे हैं? ये सियासत के दलदल में पतन की पराकाष्ठा की एक कहानी मात्र है। संजय ने मुस्लिम मां वाला बयान सिर्फ इसीलिए दिया क्योंकि वे मुस्लिम समुदाय को इमोशनली ब्लैकमेल करना चाहते थे। समाज में इस तरह से विष फैलाने वाले को रोकने का वक्त है। अभी समय जनता का है। हमे इस तरह की व्यवस्था- इस तरह के व्यक्ति को इनकार करना चाहिए।
1 comment:
वैसे गान्धी बनना कोई मुश्किल बात भी नहीं है. छल-छद्म और निरर्थक हठ ... बस यही तो है गान्धी होने का मतलब.
वैसे ब्लॉग पर आपको देख कर अच्छा लगा. इन दिनों कहां हैं, क्या चल रहा है, पूरी सूचना तफ़सील से दें.
Post a Comment